पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/२५८

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काव्य में अभिव्यञ्जनावाद રપૂરૂ कमिंग्ज साहव की समझ में यह विषय को ठीक वैसे ही सामने रखना है जैसे संवेदना उत्पन्न होती है । इसमे ऐसे शब्द नहीं हैं जो अर्थ-सम्बन्ध मिलाने के लिए, या व्याकरण के अनुसार वाक्यविन्यास के लिए लाए जाते हैं, पर संवेदना उत्पन्न करने में काम नहीं देते ( जैसे, 'और', 'किन्तु', फिर इत्यादि ) । उनके अनुसार यह खालिस कविता है, जिसमे से भापा, व्याकरण, तात्पर्य-बोध आदि का अनुरोध पूरा करनेवाले फालतू शब्द निकाल दिए गए हैं। * थोड़ा सोचिए कि कमिंग्ज के इस विचित्र विधान के मूल में क्या है। काव्यदृष्टि की परिमिति और प्रतिभा के अनवकाश के बीच नवीनता के लिए नैराश्यपूर्ण आकुलता । ‘सूर्योदय’, ‘सूर्यास्त' आदि बहुत पुराने विपय हैं जिन पर न जाने कितने कवि अच्छी से अच्छी कविता कर गए हैं। अब इन्हीं को लेकर जो विलक्षणता और नवीनती दिखाना चाहेगी वह मार्मिक दृष्टि के प्रसार के अभाव में सिवा इसके कि नए नए वादो का अन्ध अनुसरण करे, शब्दों की कलाबाजी दिखाए, पहेली खड़ी करे, और करेगा क्या ? * । ४ अंगरेज़ी में यह कविता इस रूप में लिखी गई है । SUNSET Stinging gold swarms upon the spires Silver chants the litanies the great bells are ringing with rose the lewd fat bells and a tall wind is dragging the sea withi dream ---