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चिन्तामणि

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चिन्तामणि ये होती भी हैं अत्यन्त मार्मिक । यह कम हर्प की बात नहीं है कि हमारी हिन्दी में भी इसका अच्छा विकास हुआ । मेरे देखने में कहानियों के तीन रूप हिन्दी में दिखाई पड़ रहे हैं--(१) योरपीय आदर्श पर सादे ढंग से केवल कुछ घटनाएँ और चातचीत सामने रखनेवाला--जिसका नमूना है स्वर्गीय गुलेरीजी की प्रसिद्ध कहानी ‘उसने कहा था । (२) कुछ अलंकृत दृश्य-चिन्नयुक्त---यह रूप‘हृदयेश' जी की कहानियों में मिलता है । (३) कल्पनात्मक और भावात्मक--- यह रूप 'प्रसाद' जी और राय कृष्णदासजी की कहानियों में मिलेगा । प्रेमचन्दजी ने भी बड़ी सुन्दर छोटी कहानियाँ लिखी हैं। कहानियों के क्षेत्र में श्री पं० ज्वालादत्त शर्मा, पं० जनार्दनप्रसाद झा 'द्विज', श्री राजेश्वरप्रसाद सिंह, श्रीचतुरसेन शास्त्री, श्रीयुत गोविन्दवल्लभ पन्त, वा० शिवपृजन सहाय, पं० भगवतीप्रसाद वाजपेयी, श्रीवालकृष्ण शर्मा 'नवीन', श्रीयुत जैनेन्द्रकुमार विशेष उल्लेख-योग्य हैं। हास्यरस की कहानियाँ लिखनेवाले पहले तो श्रीयुत जी० पी० श्रीवास्तव ही थे ; अब वा० अन्नपूर्णानन्दजी शिष्ट हास का बहुत अच्छा नमूना सामने ला रहे हैं। हास्यरस के सम्बन्ध में पश्चिम में इस बात का भी निरुपण हुआ है कि हास्य के आलम्बन से विनोद तो होता ही है, पर उसके प्रति कोई और भाव भी-जैसे, घृणा, विरक्ति, उपेक्षा, दया-रहता है । अब तक यही विवेचित हुआ था कि उत्कृष्ट हास्यरस में आलम्वन के प्रति प्रेमभाव होता है, अर्थात् वह प्रिय लगता है। पर अब यह कहा जाने लगा है कि उसके प्रति दया का भाव होना चाहिए, और वह दया ऐसी हो जिसके पात्र, हम अपने को भी समझे--अर्थात् जिस स्थिति में आलम्वन को देख हम हँसे उसमें हम भी हो । गद्य-काव्य जव से श्रीयुत रवीन्द्रनाथ ठाकुर की 'गीताञ्जलि' की वहुत ख्याति