पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/५२

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काव्य में प्राकृतिक दृश्य': । ४५ कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है, तो वह कोरी वकवाद या किसी और भाव के सङ्केत के लिए गढ़ा-हुआ शब्द है। यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, तला, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्भर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाह-भरी दृष्टि से देखेगा, वह सबकी सुध करके विदेश में ऑसू वहावेगा । जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी ऑख-भर नहीं देखते कि आम प्रणय- सौरभ-पूर्ण मञ्जरियो से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झोंकते कि किसानो के झोपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि दस बने-ठने मित्रो के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का पता चता- कर देश-प्रेम का दावा करे तो उनसे पृछना चाहिए कि ‘भाइयो । विना रूप-परिचय का यह प्रेम कैसा है जिनके दुःख-सुख के तुम कभी साथी नही हुए उन्हें तुम सुखी देखा चाहते हो, यह कैसे समझे ? उनके कोसो दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में 'अर्थशास्त्र' की दुहाई दिया करो , पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो । प्रेम हिसाब-किताब नही है । हिसाब-किताब करनेवाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करनेवाले नही । एक अमेरिकन फारस- वालों को उनके देश का सारा हिसाब-किताब समझाकर चला गया। हिसाब-किताव से देश की दशा का ज्ञान-मात्र हो सकता है ।। हित-चिन्तन और हित-साधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या 'भाव' पर अवलम्वित हैं, उसका सम्बन्ध लोभ या प्रेम से है , जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो। नहीं सकता । जिसे ब्रज की भूमि से प्रेम होगा वह इस प्रकार कहेगा- नैनन सौं 'रसखान' जुवै व्रज के वन, वाग, तड़ाग निहारों , वैतिक वै वलधौत के धाम करील के कुजन ऊपर वारौं ।