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चिन्तामणि

चिन्तामणि शब्द के बिना किसी पक्ष की पहचान न हो सकती हो तो हमें कहना पड़ेगा कि हमारा पक्ष है अभिव्यक्तिवाद’ और ‘सामञ्जस्यवाद । आदर्श व्यक्ति सिद्ध हो सकता है पर शादर्श लोक साध्य ही रहा है और रहेगा । जिस दिन यह सिद्ध हो जायगी उस दिन यह लोक कर्मलोक न रहेगा । फिर इसके रहने की भी जरूरत रहेगी या नहीं, नहीं कह सकते । प्रयत्न ही जीवन की शोभा है ; जीवन का सौन्दर्य है-केवल अपना पेट भरने का आनन्द से तृप्त होने का प्रयत्न नहीं ; लोक में उपस्थित बाधी, श, विषमता आदि से भिड़ने का प्रयत्न । अँगरेज़ कवि ब्राउनिग ( Browning) ने जीवन के इस प्रयन- सौन्दर्य की ओर इस प्रकार सत किया है-- । “यदि मनुष्य केवल अानन्द से तृप्त होने के लिए ही, हूँढने, पाने और आनन्द लेने के लिए ही, बना है तब तो जीवन का इतना गर्व-उसके महत्व की इतनी चर्चा--व्यर्थ है । यह आनन्द पूरा हुआ कि मनुष्य के दिन भी पूरे हुए समझिए । क्या पेट-भरे पशु- पक्षी को भी संशय या चिन्ता सताती है ? फिर, प्रत्येक वाधा को, जो भूतल के सम-सुगम को चिपम और दुर्गम करती हो, खुशी से आने दो ; प्रत्येक दंश ( पहुँचाए हुए कष्ट) को जो न बैठा रहने देता हो, न खड़ा रहने, वरावर चलाता ही रहता हो, खुशी से लगने दो । हमारे आनन्द धरिह आने केश ही हो जायें तो क्या ? प्रयत्नवान् रहो और जो कुछ श्रम पड़े उसे गनीमत समझो । सीखो, कष्ट की परवा न करो ; साहस करो, क्लेश से मुंह न सोड़ो' । *

  • Poor vaunt of life indeed,

Were inan but formed to feet On j०y, to solely seek and find and feast Sucli feasting ended, then