पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/६२

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काव्य में रहस्यवाद ५५. जगत् की विप्न-बाधा, अत्याचार, हाहाकार के बीच ही जीवन के प्रयत्न-सौन्दर्य की पूर्ण अभिव्यक्ति तथा भगवान् की मङ्गलमयी शक्ति का दर्शन होता है । अतः जो आँख मूंदकर काव्य का पता जगत् । और जीवन से बाहर लगाने निकलते हैं वे काव्य के धोखे में, या उसके बहाने से, किसी और ही चीज के फेर में रहते हैं। इसी प्रकार जो लोग ज्ञात या अज्ञात के प्रेम, अभिलाष, लालसा या वियोग के नीरव सरव क्रन्दन अथवा वीणा के तार झक्कार तक ही काव्यभूमि

  • समझते हैं उन्हे जगत की अनेकरूपता और हृदय की अनेक-भावा-

त्मकता के सहारे अन्धकूपता से बाहर निकलने की फिक्र करनी चाहिए। निकलने पर वे देखेंगे कि काव्यभूमि कितनी विस्तृत है। जितना विस्तार जगत् और जीवन का है उतना ही विस्तार उसका है। काव्य- दृष्टि से यह दृश्य जगत् ब्रह्म की नित्य और अनन्त कल्पना है जिसके साथ उसका नित्य हृदय भी लगा हुआ है। यह अनन्त - रूपात्मक कल्पना व्यक्त और गोचर है---हमारी ऑखों के सामने बिछी हुई है । समष्टि रूप में यह शश्वत और अनन्त है। इसी की भिन्न-भिन्न रूपचेष्टाओं की ओर हृदय के भिन्न-भिन्न भावो को अपने निज के सम्बन्ध-प्रभाव से मुक्त करके प्रवृत्त करना ब्रह्म की व्यक्त सत्ता में अपनी व्यक्त सत्ती को लीन करना है। इस As sture an end to men ) Iris care the cropful bird ? Frets Doubt the may-crammed beast ? | Then yelcome eacl rebuff That tturris earth's smoothness rough, Eacl sting that brds 110r sit, nor stand, but go. Be our joys three-parts pain ! Strive and lnold chear the strain , Learn, nor account the pang , dare never Grudge the throe.