पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/६८

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काव्य मे रहस्यवाद . ६१ परस्पर सम्वद्ध विविध वृत्तियों का सामञ्जस्य काव्यं का परम उत्कर्ष और सबसे बड़ा मूल्य है । सामञ्जस्य काव्य और जीवन दोनों की सफलता का मूल मन्त्र है । काव्य का जो स्वरूप महर्षि वाल्मीकि ने अत्यन्त प्राचीन काल में तमसा के किनारे प्रतिष्टित किया था, आज ईसा की बीसवीं शताब्दी में इंगलैंड के अत्यन्त निर्मलदृष्टि समालोचक रिचर्ड्स, योरपीय समीक्षा-क्षेत्र को बहुत सा निरर्थक शब्दजाल और कूड़ा-करकट पार करते हुए, उसी स्वरूप तक पहुँचे है । *। अब विचारने की बात हैं कि किसी अगोचर और अज्ञात के प्रेस में ऑसुओ की आकाशगङ्गा में तैरने, हृदय की नसो का सितार बजाने, प्रियतम असीम के सङ्ग नग्न प्रलय सा ताण्डव करने या मुंदे नयन- पलकों के भीतर किसी रहस्य का सुखमय चित्र देखने को ही-भी तक तो कोई हर्ज न था--कविता कहना, कहाँ तक ठीक है ? चारो ओर से बेदखल होकर छोटे-छोटे कनकौवो पर भला कविता कव तक टिक सकती है ? असीम और अनन्त की भावना के लिए अज्ञात या अव्यक्त की ओर झूठे इशारे करने की कोई जरूरत नहीं । व्यक्त पक्ष में भी वही असीमती और वही अनन्तता है। व्यक्त और | * Any thing is valuable which vilt satisfy att appetency १vithout involving the frustration of some eqtual or more 1mp01 tant appetency The cornmplications possible 1] the systeinisation of Inputscs are indefinite The plasticity of special appetencies and acti- vities varies enormously, X ४ The importance of an impulse can be refined as tine extent of the disturbance of other impulses 1m the individual's acti- vities which the thvarting of the impulse involves, | -1. A. Richards Principles of Literary Criticism, Chap VII. (Third Edition 1928)