पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/७७

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चिन्तामणि

चिन्तामणि दोप है । यदि योरप के कवि उनकी बातों पर चलते तो वहाँ से कविता या तो अपना डेरा-डंडा उठा लिए होती, या लूली-लॅगड़ी हो जाती । तथ्य-ग्रहण में अत्यन्त निपुण शेली, वर्डसवर्थ, मेरडिथ आदि बड़े-बड़े कवियों ने वाल्मीकि, काई दास, भवभूति आदि संस्कृत के प्राचीन कवियों की शैली पर कोरे प्राकृतिक दृश्यो का, बिना किसी दूसरे तथ्य-विधान के, बड़ा ही सूक्ष्म और संरि → चित्रण किया है--- और बहुत अधिक किया है। वे इसके लिए प्रसिद्ध हैं। प्रकृति की ठीक और सची व्यञ्जना के बाहर जिस भाव, तथ्य आदि का आरोप हम प्रकृति के रूपों और व्यापारो पर करेंगे वह सर्वथा अप्रस्तुत अर्थात अलङ्कार मात्र होगा, चाहे हम उसे किसी अलङ्कार के बँधे साँचे में ढाले या न ढालें । उसका मूल्य एक फालतू या ऊपरी चीज के मूल्य से अधिक न होगा। चाहे हम कोई उपदेश निकालें, चाहे सादृश्य या साधम्र्य के सहारे कोई नैतिक या आध्या- त्मिक तथ्य उपस्थित करे, चाहे अपनी कल्पना या भावना का मूत्ते विधान करें, वह उपदेश, तथ्य या विधान प्रकृति के किसी वास्तविक मर्म का उद्घाटन न होगी । अन्तःकरण की किसी अनुभूति का उद्धा- दन भी वह नभी होगा जब किसी सच्चे भाव से प्रेरित और सम्वद्ध | ॐ रिचय ने योरपीय समीक्षा-क्षेत्र के अर्थशून्य वागढिम्बर और गड़बड- झाले पर बहुत खेद प्रकट किया है। उन्होंने सक्षेप में उसका स्वरूप इन शब्दों में सूचित किया है --- A feiy conjectures supply of admonations, rajany acute 1solate observations, some briliarit gressses, much oratory and applied poetry, inexlhaustible confusion, a sufficiency of dog- ma, n० small stock of prejudices, vlhirmsies and crotchets, l profusion of mysticisrm, a little genuine speculation, sundry stray inspirations, of such as these is estant critical theory composed