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चिन्तामणि

चिन्तामणि उसके आच्छादन से प्रस्तुत दृश्य पर से हमारे भाव का लक्ष्य हटने न पाएगा । दूसरी के सम्बन्ध में हमारी वक्तव्य यह है कि न तो सच्ची कल्पना तमाशा खड़ा करने के लिए है और न काव्य कोई अजायबघर है। कविता में कल्पना को हम साधन मानते हैं, साध्य नही ।। प्रकृति के रूपों और व्यापारों का उपयोग साधन-रूप में भी होता है, जैग्ने, अलङ्कारो मे । अलङ्कार प्रस्तुत वस्तु या तथ्य की अनु- भूति को तीन करने के लिए ही प्रयुक्त होते है ; पर, प्रकृति के रूप और व्यापार का व्यवहार प्रस्तुत के स्वरूप के गोचर प्रत्यक्षीकरण के लिए भी बराबर होता है ! तीन्न अन्तर्दृष्टिवाले कवि अपने सूक्ष्म (Abstract ) विचारों का बड़ा ही रमणीय मूर्त्त प्रत्यक्षीकरण करते हैं । यह बात गूढ और सूक्ष्म अर्थगर्भित कविताओं में वराबर पाई जाती है । ऊपर जिस प्रकार की आडम्बरी कविता का उल्लेख हुआ है उसका इस प्रकार की कविता से लेशमात्र सम्बन्ध नही । इसकी अन्चयपूर्ण व्याख्या होने पर विचार जगमगाते हुए बाहर निक- लते आते हैं। उसकी तह में विचारधारा का नाम तक नहीं रहता। सूक्ष्म भावना (Abstract ) के सूर्त (Concrete ) प्रत्यक्षी- करण का विधान लक्षणा द्वारा भी होता है और ‘साध्यवसान रूपक द्वारा भी । लक्षणा व्यंग्य प्रयोजन सिद्ध करने के अतिरिक्त प्रस्तुत भावना के स्वरूप का प्रत्यक्षीकरण भी करती है। लोभ से चञ्चल मन को यदि कहा जाय कि वह किसी ओर लपक रहा है तो उसकी वृत्ति का स्वरूप गोचर होकर हमारे सामने आ जाता है। सूक्ष्म को मूर्त जिस प्रकार कवि लोग करते हैं उसी प्रकार कभी-कभी मूर्त्त को सूक्ष्म भी करते है । जब उन्हें किसी गोचर तथ्य के सम्बन्ध में अपने पाठको की दृष्टि का अत्यन्त प्रसार करके उन्हें विचारोन्मुख और उनकी मनोवृत्ति को गम्भीर करना वाञ्छित होता है तब वे उस तथ्य