पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/८६

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काव्य मे रहस्यवाद अन्तर्वाणी- मैं तू ही हूँ ( तेरी आत्मा हैं) इसी प्रकार “तुरीयावस्था' ( The Trance) नाम की कविता में उन्होंने ब्रह्मानुभूति का वर्णन इस प्रकार किया है-- "मैं निश्चय ( जिसका सम्बन्ध बुद्धि या विचार से होता है) के ऊपर उठ गया था, काल से परे हो गया था । दिक् के ज्योतिष्क मण्डल से तथा उस कोने से जिसे चेतना या ज्ञान कहते है, बिल्कुल बाहर हो गया था । उस दशा मे हे प्रभो ! क्या मैं तुम्हारे बीच मे नहीं था। यहाँ पर हम यह स्पष्ट कह देना चाहते हैं कि उक्त ज्ञानातीत ( Transcendental ) दशा से–चाहे वह कोई दशा हो या न हो-काव्य का कोई सम्बन्ध नहीं है। स्वयं अवरक्रोवे ने ही अपनी एक दूसरी कविता “शरीर और आत्मा” ( Soul and Body ) मे, काव्य की वास्तविक भूमि क्या है, इसका आभास दिया है। उस कविता में आत्मा इस बेतना के तंग घेरे से बाहर होने के लिए मनोमय कोश ( ज्ञानेन्द्रियों और मन जिनसे सांसारिक विषयो। की प्रतीति होती है ) को फेंका ही चाहती है कि शरीर उसको चेतावनी देता है कि ऐसा करने से “तू इस विस्मयपूर्ण आनन्द को खो बैठेगा जिसे मैंने अपनी विषयविधायिनी इन्द्रियों द्वारा इस प्रिय जगत् में खड़ा कर रखा है। फिर यह नील-हरित, यह सौरभ, यह सङ्गीत कहाँ ? फिर यह

  • I was exalted above surety And out of time did fall

I stood outside the burning rims of place, Outside that corner, consciousness Then was not in the midst of tliee Lord God ?