पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/८७

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चिन्तामणि

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८० चिन्तामणि शाद्वल-प्रसार, यह मन्द प्रशान्त अनिल-स्पर्श और ढलते सूर्य का स्वर्णाभ विराम कहाँ ? फिर ये ऊँची उठी हुई पर्वतो की चोटियाँ कहाँ, जो ऑखो पर कुहरे की पट्टी बाँधे ( ध्यानावस्थित हो ) मानो नित्य और दिव्य अनाहत स्वर सुन रही है।* मनोमय कोश ही प्रकृत काव्यभूमि है, यही हमारा पक्ष है। इसके भीतर की वस्तुओं की कोई मनमानी योजना खड़ी करके उसे इससे बाहर के किसी तथ्य का—जिसका कुछ ठीक ठिकाना नहींसूचक वताना हम सचे कवि का क्या, सच्चे आदमी का काम नहीं समझते ।। अब थोड़ा अज्ञात की लालसा' का विचार भी कर लेना चाहिए जिसका निरूपण अवरक्रोवे ने मज़वी ढंग पर अपने ‘‘सन्त थूमा का आत्म-विक्रय” ( Sale of St. Thomas नामक काव्य में किया है । ईसाइयों में एक प्रवाद प्रचलित है कि ईसा के चेले थूमा दक्षिण भारत में उपदेश करने आए थे। उसी प्रवाद के आधार पर यह कविता रची गई है । ईसा थूमा को भारतवर्ष में प्रचार के लिए भेजते हैं और वे भाग-भाग आते हैं। जब वे दूसरी बार भागने पर होते हैं, तव हजरत ईसा उनसे कहते है--

  • Thou wilt miss the wonder I lave made for thec Of thus dcar world with my fashioning seses Thic blue, the fragrance the singing and the green:

Great spaces of grassy land, and all the air One quiet, the sun taking golden ease Upon an afternoon, Tall luus that stand in weather-blinded trances As if they heard, drawn upward and lield there, Some god's eternal lune,