पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/९०

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३ कव्यि में रहस्यवाद सुख-सौन्दर्य की पूर्णता की सामान्य धारणा और पुष्ट होती रही । यह धारणा पूरवी (एशियाई) जातियों में अब तक मूलबद्ध है ।। ३–तृतीय क्षेत्र में सुख-सौन्दर्य की पूर्णता की भावना विल्कुल आधुनिक है। इसका प्रादुर्भाव मनुष्यजाति की स्थिति पर व्यापक दृष्टि से विचार करने की वर्तमान प्रवृत्ति के साथ-साथ हुआ है । धर्मनीति, राजनीति, व्यापारनीति आदि के कारण मनुष्यजाति के भीतर फैली हुई विषमता, क्लेश, ताप, अन्याय, अत्याचार इत्यादि के परिहार की भावना और प्रयत्न के साथ आशा और उत्साह का संयोग करने के लिए कवियो की वाणी भी अग्रसर हुई । इस प्रकार की कविता को प्रचार योरपीय देशों में सुख-समृद्धि और स्वातन्त्र्य के सङ्गीत के रूप में शेली के समय से लेकर अब तक जारी है। भविष्य का सुख-स्वप्न वर्तमान योरपीय कविता के प्रधान लक्षणों में है। यह मङ्गलाशा बहुत ही प्रशस्त भाव है, इसमे सन्देह नहीं ; पर इसके सम्बन्ध में कुछ अस्वाभाविक और कृत्रिम चर्चा का प्रचार भी देखा जाता है । यह सुख-स्वप्न “भविष्य की उपासना या भविष्य को प्रेम कहा जाता है । वास्तव में यह प्रस्तुत जीवन का प्रेम है। आशा इसी प्रेम के सञ्चारी के रूप में उठकर इस जीवन के पूर्ण सौन्दर्य का दर्शन इसे भविष्य के क्षेत्र में ले जाकर करती है। भविष्य के सुखसौन्दर्य के चित्रण की प्रवृत्ति का यही मूल है । यह चित्रण भी उसी हद तक पहुंचा दिया जाता है जिस हद तक किसी परलोक के सुख-सौन्दर्य का चित्रण । अवरक्रोवे ने इस जीवन के साथ “नित्य का संयोग' ( The Eternal Wedding ) किसी भविष्यकाल मे, निविशेष और निरपेक्ष आनन्द का स्वप्न देखते हुए, इस प्रकार कराया है-- .. .....So we are drivern Onward and upward, in a wind of beauty,