पृष्ठ:चिंतामणि दूसरा भाग.pdf/९२

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काव्य मैं रहस्यवाद से निर्मल और स्वच्छ करता चला आ रहा है । अतीत को और हमारा साहचर्य वहुत पुराना है। उसे हम जानते हैं, पहचानते हैं, इसी लिए प्यार करते हैं। भविष्य को हम नहीं जानते, उसकी हमारी जान-पहचान तक नहीं । उसके साथ प्रेम कैसा ? परिचय के विना प्रेम हम नहीं मानते । प्रेम के लिए परिचय चाहिए——चाहे पूरा, चाहे अधूरा ।। | ४--अब इस गोचर-जगत् के परे अभौतिक, अव्यक्त और अज्ञात क्षेत्र को लीजिए । सुख-सौन्दर्य की पूर्ति के लिए जो तीन क्षेत्र ऊपर निर्दिष्ट किए गए उनमें सबसे अज्ञात भविष्य' का क्षेत्र है। उसके अन्तर्गत हम दिखा चुके है कि जो भविष्य का प्रेम' कहा जाता है। वह वास्तव में प्रस्तुत जीवन का प्रेम है जो आशा का सञ्चरण कराके कवि को भविष्य-सुख-सौन्दर्य के चित्रण में प्रवृत्त करता है। वही बात यहाँ भी है। वास्तव में यह इसी जगत् के सुख-सौन्दर्य की असिक्ति या प्रेम है जो सञ्चारी के रूप में आशा या अभिलाष को उन्मेष करके, इस सुख-सौन्दर्य को किसी अज्ञात या अव्यक्त क्षेत्र में ले जाकर पूर्ण करने की ओर प्रवृत्त करता है। अतः तत्त्वदृष्टि से, मनोविज्ञान की दृष्टि से, साहित्य की दृष्टि से अज्ञात की लालसा कोई भाव ही नहीं है। यह केवल ज्ञात की लालसा' है जो भाषा की छिपानेवाली वृत्ति के सहारे अज्ञात की लालसा' कही जाती है। अपने सुख-सौन्दर्य की भावना को पूर्णता पर पहुँचाने के लिए इस क्षेत्र की ओर पहले पहल दृष्टि करनेवाले सूफी थे। उनकी भावुकतो इस जगत् की ऐसी विचित्र और रमणीय रूप-विभूति को केवल ईश्वर की कृति या रचना मानने से तृप्त नहीं हुई। किसी के बनाए खिलौने की सुन्दरता देख हम चाहे जितने मुग्ध हो-इतने मुग्ध हो कि बनानेवाले का हाथ चूमने को जी चाहे—पर हमारा प्रेम उस ( बनानेवाले ) से दूर ही दूर रहेगा। इससे सूफियों ने इस प्रत्यक्ष