पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१६६

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कर्तव्य-पालन सूसोई नहीं, और दिन तो चिराग जलते ही पलंग पर पहुंच जाती थी? कन्या ने कुछ लजाकर मुसकिराते हुए कहा-आज नींद नहीं आई। माँ-तो AT, सो जाकर। कन्या-एक पान खिला दो, तो जाऊँ। माँ-दुर निगोड़ी, पान खाके सोएगी ! माँ ने एक पान लगाकर दे दिया। फन्या पान लेकर चली गई। उसके चले जाने पर माँ बोली-बेटा रहमत, तुम घर में ऐसे. वैसे अखवार मत जाया करो। कुलसूम (कन्या का नाम ) पढ़ती है, इसका खून बड़ा हलका है, बड़ी जल्दी दहशत ( भय ) खा जाती है । देखा न, जरा कान में भनक पढ़ गई, प्रौरन दौड़ी आई। पिता-पुत्र दोनों भोजन करके उठे । माँ ने पुकारा-ऐ नसीवन, नसीवन ! मुई कहीं गारत हो गई ! -~-क्या है अम्मीजान १ माँ-यह नसीबन निगोड़ी कहाँ मर गई ? कन्या-नसीवन तो यहाँ पड़ी खर्राटे ले रही है। माँ-लो, मुई को शाम हो साँप सूंघ गया ! जगा दे मुर- दार को। कुछ देर में नसीबन बौंडी आँखें मलती हुई आई रहमत- अली की माँ बोली-ऐसी शाम ही से कहाँ की नींद फट पड़ी? दिन-दिन शऊर को दीमक लगती जा रही है ? नसीवन-मैं तो बीवी कुलसूम को कहानी सुना रही थी। सुनाते-सुनाते सो गई। माँ-जा, झटपट श्राफ़्ताबा और सिलाची लाकर हाथ धुला। नसीबन ने जल जाकर पिता-पुत्र के हाथ धुलाए । हाथ धोकर दोनों ने पान खाए । पुन तो सोने के लिये अपनी शय्या पर चना गया, पिता वहीं खड़ा रहा । पुत्र के चले जाने पर पत्नी ने पति से