पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/१९३

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ईश्वर का हर . उठ खड़ा हुआ । इतना सुनते ही गकुर का मुँह बाल हो गया। उन्होंने न पाव देखा न ताव. तह से एक डंडा मार ही तो दिया । डंडा खाकर सिवदिनवा बोला-बस मालिक, अव न मारना, अच्छा न होगा । बल काका, ठाकुर का मुँह अंगारा हो गया। उन्होंने उसी वक्त एक गुहेत को बुलाया. और कहा-मारो साले को, खूब मारो। गुडैत डंडा लेकर जुट गया । उसे किस बात का डर था । जब ठाकुर सामने खड़े कह रहे थे, तब डर काहे का । उसने तीन-चार लाठियाँ जो मारों, तो बस काका, सिवदिनवा पसर गया। उसने आँखें फाड़ दो, फिर भी ठाकुर बोले-साला ढोंग करता है। मारे जायो। गुहेत ने तीन-चार काठिगाँ और मारी । वस, गरीव सिवदिनवा के परान निकल गए। सधुवा-फिर क्या हुआ? वही हुआ क्या । उसी बखत उधर से लछमोपुर के जमींदार अपने गाँव जा रहे थे । शहर से दो बजेवाली गाड़ी में आए थे। तो वह भी उतर पड़े। उन्होंने जब देखा कि सिव- दिनवा मर गया, तो उसी बखत थाने पर सोट करवाई। उनकी और कुर चंदनसिंह की तो लाग-डाँट चली हो पाती है। थानेदार पाए । जमींदार ने अपने सामने गुडैत के बयान लिवाए। गुहेत ने कह दिया कि पहले ठाकुर ने आप मारा, फिर मुझसे मारने को कहा । मैंने भी दो-तोन लाठियाँ मारी । बस, मर गया!' अब लहास याने पर गई है ! ठाकुर चंदनसिंह और गुहेत भी पकड़े गए हैं ! सधुवा-~~यह तो बड़ा गजब हुआ। अब ठाकुर विना सजा खाए नहीं बचेंगे। एक दूसरा आदमी बोला--भगवान् ने गरीबों की सुन बड़ा उत्पात मचा रखा था। ठाकुर गरीबों को मार डालता था । अव पाप का घड़ा फूटा है। हल्ला जो -