पृष्ठ:चित्रशाला भाग 2.djvu/९५

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संतोष-धन . यह कहकर कांस्टेबल उसे घसीटता हुश्रा ने चला । रामभजन यह सब देख-सुनकर पापाण-मूर्ति-से हो गए । इस समय उसकी दशा पर रामभजन का हृदय रो रहा था। रामभजन सोच रहे थे-~-राम- भजन, इसके छोटे-छोटे बच्चे भूखों मरेंगे ! अभी हमारी ऐसी दशा हो, तो हमारा लल्लू और कल्लू किसके सहारे जिएँ ? हमारी पत्नी और माता क्या खाकर रहें ? धिक्कार है ऐसे रुपए पर ! ऐसे रुपए से तो हम भिखारी ही भले । इस बेचारे की प्रास्मा इस समय कितनी दुखी है ! कोतवाली में न जाने बेचारे की क्या दुर्दशा की.जाय । इसका शाप अवश्य हम पर पड़ेगा । हमारे दो पुत्र हैं। उन पर इसकी आत्मा का शाप पड़ेगा | आँखों से इसकी दुर्दशा न देखते, तव भी ठीक था; पर अव तो अपनी आँखों से देख लिया, अब भी जो हम चुप बैठे रहेंगे, तो हमें नरक में भी ठौर न मिलेगा। राममजन, ऐसे रुपए पर लात मार दो ! एक का सर्वनाश करके यदि तुमने हजार-दो हज़ार ले ही लिए, तो वह फलेंगे नहीं ; उलटा नाश कर देंगे। तुम्हारे दो लाल हैं, क्या रुपया तुम्हें उनसे अधिक प्यारा है ? उन्हें कुछ हो गया, तो यह रुपया किस काम आवेगा? रामभजन न-जाने कितनी देर तक खड़े यही सोचते रहे। उन्हें इस समय अपने तन-बदन का होश न था । हठात् एक गाड़ी की घड़घड़ाहट से उनकी नींद-सी टूटी। उन्होंने अपने चारों ओर देखा। इस समय उनके नेत्र अश्रु-पूर्ण हो रहे थे, और जान पड़ता था, अपने होश में नहीं हैं । हठात् वह तेजी के साथ एक ओर चल दिए। एक घंटे बाद राममजन लाना मुसद्दीलाल के पास पहुँचे, और बोले-लाला, धापसे एक बात कहनी है। लाला मुसद्दीलाल रामभजन को पहचानते थे। उन्होंने कहा- कहो महाराज। -