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प्रस्तुत पुस्तक स्थायी साहित्य के भावों और विचारों का हो संग्रह है, किन्तु प्रत्येक वस्तु की स्थायिता उपयोगिता से सम्बंध रखती है। इस ग्रंथ की उप-योगिता के विषय में मुझ को कुछ कहने का अधिकार नही । केवल इतना ही वक्तव्य है कि यदि यह पुस्तक
मानवजाति अथवा हिन्दीप्रमिकों के लिये कुछ भी उपयोगिनी सिद्ध हुई. यदि इस के द्वारा किसी सज्जन का क्षणिक मनोरजन भी होगा, तो मैं परिभ्रम को सफल और अपने को कृतकृत्य समझंगा।
हरिऔध
- सदार्वती महल्ला, आजमगढ़
- १३ फरवरी, १९२४