पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१०२

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सिर
क्या हुआ पा मये जगह ऊॅची।
जो समझ औ विचार कर न चले॥
सिर! अगर तुम पड़े कुचालों मे।
तो हुआ ठीक जो गये कुचले॥

जो कि ताबे बने रहे सब दिन।
वे सँभल लग गये दिखाने बल॥
हाथ क्या, उॅगलियां दखाती हैं।
सिर मिला यह तुम्हें दबे का फल॥

सोच कर उस की दसा जी हिल गया।
जो कि मुॅह के बल गिरा ऊॅचे गये॥
जब बुरे कॅचे तुम्हें रुचते रहे।
सिर! तभी तुम बतरह कूॅचे गये॥

पा जिन्हें धरती उधरती ही रही।
लोग जिन के अवतरे उबरे तरे॥
सिर! गिरे तुम जो न उन के पॉव पर।
तो बने नर-देह के क्या सिरधरे॥