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चोखे चौपदे

जो भरे को ही रहे भरते सदा।
वे बहुत भरमे छके बेढँग ढहे॥
नाक तुम को क्यों किसी ने मल दिया।
जब कि मालामाल मल से तुम रहे॥

तू सुधर परवाह कुछ मल की न कर।
पाप के तुझ को नहीं कूरे मिले॥
लोग उबरे एक पूरे के मिले।
हैं तुझे तो नाक दो पुरे मिले॥

वह कतर दी गई सितम करके।
पर न सहमी न तो हिली डोली॥
नाक तो बोलती बहुत ही थी।
बेबसी देख कुछ नहीं बोली॥

दुख बड़े जिस के लिये सहने पड़ें।
दें किसी को भी न वे गहने दई॥
तब अगर बेसर मिली तो क्या मिली।
नाक जब तू बेतरह बेधी गई॥