पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/११५

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कान
दासपन के चिन्ह से जो सज सका।
क्यों नहीं तन बिन गया वह नीच तन॥
कान! तेरी भूल को हम क्या कहें।
बोलबाला कब रहा बाला पहन॥

धूल में सारी सजावट वह मिले।
दूसरा जिस से सदा दुख ही सहे॥
और पर बिजली गिराने के लिये।
कान तुम बिजली पहनते क्या रहे॥

बात सच है कि खोट से न बचा।
पर किसी से उसे कसर कब थी॥
सब भला क्यों न वह मुकुत पाता।
कान की लौ सदा लगी जब थी॥

जब मसलता दूसरों का जी रहा।
आँख में तुझ से न जब आई तरी॥
दे सकेंगी बरतरी तुझ को न तब।
कान तेरी बालियाँ मोती भरी॥