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अन्योक्ति
भीतरी मैल जब निकल न सका।
तब तुम्हें क्यों भला जहान गुने॥
बान छूटी न जब बनावट की।
तब हुआ कान क्या पुरान सुने॥
किस लिये तब न तू लटक जाता।
जब भली लग गई तुझे लोरकी॥
छोड़ तरकीब से बने गहने।
गिर गया कान तू पहन तरकी॥
तग उतना ही करेगी वह हमें।
चाह जितनी ही बनायेंगे बड़ी॥
कान क्यों हैं फूल खोंसे जा रहे।
क्या नहीं कनफूल से पूरी पड़ी॥
जब किसी भांत बन सकी न रतन।
तेल की बूँद तब पड़ी चू क्या॥
जब न उपजा सपूत मोती सा।
कान तब सीप सा बना तू क्या॥