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चोखे चौपदे

राग से, तान से, अलापों से।
बह न सकता अजीब रस-सोता॥
रीझता कौन सुन, रसीले सुर।
कान तुझ सा रसिक न जो होता।

तो मिला वह अजीब रस न तुझे।
पी जिसे जीव को हुई सेरी॥
लौ-लगों का कलाम सुनने मे।
कान जो लौ लगी नहीं तेरी॥




गाल

वह लुनाई धूल में तेरी मिले।
दूसरों पर जो बिपद ढाती रहे॥
गाल तेरी वह गोराई जाय जल।
जो बलायें और पर लाती रहे॥

तो गई धूल मैं लुनाई मिल।
औ दुआ सब सुडौलपन सपना॥
पीक से बार बार भर भर कर।
गाल जब तू उगालदान बना॥