पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१२५

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दाँत

हो बली, रख डीलडौल पहाड़ सा।
बस बड़े घर मे, समझ होते बड़ी॥
हाथियों को दॉत काढ़े देख कर।
दाबनी दॉतों सले उँगली पड़ी॥

जब कि करतूत के लगे घस्से।
तब भला किस तरह न वे घिसते॥
पीसते और को सदा जब थे।
दाँत कैसे भला न तब पिसते॥

है निराली चमक दमक तुम मे।
सब रसों बीच हो तुम्ही सनते॥
दाँत यह कुन्दपन तुम्हारा है।
जो रहे कुन्द को कली बनते॥

रस किसी को भला चखाते क्या।
हो बहाते लहू बिना जाने॥
दॉत आनर तुम्हे न क्यों मिलता।
हो अनूठे अनार के दाने॥