पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१२६

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अन्योक्ति

क्या लिया बार बार मोती बन।
लोभ करते मगर नही थकते॥
लाल हो लाख बार लोहू से।
दाँत तुम लाल बन नही सकते॥

आस जिस से हो वही जो बद बने।
दूसरों से हो सके तो आस क्या॥
दाँत जब तुम जीभ औ लब मे चुभे।
पासवालों का किया तब पास क्या॥

लाल या काले बनोगे क्यों न तब।
जब कि मिस्सी लाल या काली मली॥
दॉत क्या रगीन बनते तुम रहे।
सादगी रगोनियों से है भली॥

वह बनी क्यों रहे न सोने की।
तुम उसे फेंक दो न ढील करो॥
लीक है वह लगा रही तुम को।
दॉत कुछ कील को सबील करो॥