पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१२८

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अन्योक्ति

बिख रहे जो कि घोलती रस मे।
क्यों उसे रस चखा चखा पालें॥
बात जिस से सदा रही कटती।
क्यों न उस जीभ को करा डालें॥

बात कड़वी, कड़ी, कुढगी कह।
जब रही बीज बैर का बोती॥
तब लगी क्यों रही भले मुँह मे।
था भला जीभ गिर गई होती॥

सच, भली रुचि, सनेह, नरमी का।
नाम ही जब कि वह नहीं लेती॥
तब सिवा बद-लगाम बनने के।
चाम की जीभ काम क्या देती॥

क्या गरम दूध और दाँत करें।
सब दिनों किस तरह बची रहती॥
जीभ कैसे जले कटे न भला।
जब कि थी वह जली कटी कहती॥