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चोखे चौपदे


क्यों न तब तू निकाल ली जाती।
जब बनी आबरू रही खोती॥
क्यों नही आग तब लगी तुझ में॥
जीभ जब आग तू रही बोती॥

क्या रही जानती मरम रस का।
जब कि रस ठीक ठीक रख न सकी॥
तब किया क्या तमाम रस चख कर।
रामरस जीभ जब कि चख न सकी॥

जीभ औरों की मिठाई के लिये॥
राल भूले भी न बहनी चाहिये।
जब कि कड़वापन तुझे भाता नहीं।
तब न कड़वी बात कहनी चाहिये॥

जब कि प्यारी बात का बरसा न रस।
तू बता तब क्या हुआ तेरे हिले॥
तरबतर जब जीभ तू करती नही।
सो तरावट धूल में तेरी मिले॥