पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१३४

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अन्योक्ति

दो बना और को न बेचारा।
तुम बुरी बात से बचो हिचको॥
खो किसी की बची बचाई पत।
होंठ तुम बार बार मत बिचको॥

जब मिठाई की बदौलत ही तुम्हें।
बोल कड़वे भी रहे लगते भले॥
मुसकुराहट के बहाने होंठ तुम।
तब अमी-धारा बहाने क्या चले॥

हँसी

जब कि बसना ही तुझे भाता नही।
तब किसी की आँख में तू क्यों बसी॥
क्या मिला बेबस बना कर और को।
क्यों हँसी भाई तुम्हें है बेबसी॥

जो कि अपने आप ही फँसते रहे।
क्यों उन्हीं के फाँसने में वह फँसी॥
जो बला लाई दबों पर ही सदा।
तो लबों पर किस लिये आयी हॅसी।