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चोखे चौपदे

जब रहा पास कुछ न बल-बूता।
जब न थी रोक थाम कर पाती॥
जब उखड़ती रही उखाड़े से।
क्यों न दाढ़ी उखाड़ ली जाती॥

बाढ़ जो डाल गाढ़ मे देवे।
तो भला किस लिये बढ़ी दाढ़ी॥
जो चढ़ी आँख पर किसी की तो।
क्यों चढ़ाई गई चढ़ी दाढ़ी॥

गला

तब खिले फूल से सजा क्या था।
तब भला क्या रहा सुगध भरा॥
तब दिलों को रहा लुभाता क्या।
जब किसी के गले पड़ा गजरा॥

वह तुमारा बड़ा रसीलापन।
सच कहो हो गया कहाॅ पर गुम॥
जो कभी काम के न फल लाये।
तो गला फूलते रहे क्या तुम॥