पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१२७
अन्योक्ति

बोल जब बन्द ही रहा बिल्कुल।
तब लगे जोड़बन्द क्यों बोले॥
जब कि वह खुल सका न पहले ही।
तब भला क्यों गला खुले खोले॥

तब भला किस तरह न फट जाता।
जब कि रस से न रह गया नाता॥
आज जब वह बहुत रहा चलता।
तब भला क्यों गला न पड़ जाता॥

बारहा बन्द हो बिगड़ जावे।
बैठ जावे, घुटे, फँसे, सूखे॥
पर गले की अजब मिठाई के।
कब न मीठे पसद थे भूखे॥

तब कहाॅ रह सका सुरीलापन।
जब कि सुर के लिये रहा भूखा॥
सोत रस का रहा बहाता क्या।
जब कि रस को गॅवा गला सूखा॥