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चोखे चौपदे

तो पिलाये तो पिलाये क्या भला।
जो उसे जल का पिलाना ही खला॥
तो खिलाये तो खिलाये क्या उसे।
जो खिलाये दाख दुखता है गला॥

हो सके किस तरह उपज अच्छी।
जब कि उपजा सकी नही क्यारी॥
तब उभारी न जा सकी बोली।
जब कभी हो गया गला भारी॥

जब कि वह पुर पीक से होता रहा।
जब रहे उस मे बुरे सुर भी अड़े॥
मोतियों की क्या पड़ी माला रही।
तब गले मे क्या रहे गजरे पड़े।

कंठ

जब भले सुर मिले नही उस में।
जब कि रस में रहा न वह पगता॥
तब पहन कर भले भले गहने।
कठ कैसे मला भला लगता॥