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चोखे चौपदे

पेन्ह ले तो पैन्ह ले छिगुनी उन्हे।
क्या करे उँगली बड़ी छल्ले पहन॥
तन बड़ाई के लिये छोटे सजे।
है बड़ा होना बड़ों का बड़प्पन॥

नाम पाता कौन है बेकाम रह।
क्यों बड़ी उँगली न बिगड़े इस तरह॥
पास जब बेनाम वाली के रही।
तब बनेगी नामवाली किस तरह॥

क्यों न हो छिगुनी बहुत छोटी मगर।
मान कितने काम कर वह ले सकी॥
ऐ बड़ी उँगली बता तू ही हमे।
काम क्या तेरी बड़ाई दे सकी॥

जब बने देती रहें सुख और को।
दूसरों के वास्ते दुख भी सहे॥
जब कभी छिड़के, न छिड़के गर्म जल।
उँगलियां चन्दन छिड़कती ही रहें॥