पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४२
चोखे चौपदे

ढोंग रचते क्या भलाई का रहे।
जब बुराई का बिछाते जाल थे॥
किस लिये माला रहे थे फेरते।
जब मलों से हाथ मालामाल थे॥

वह सका दुख न जान छिकने का।
जो गया है कही नही छेंका॥
क्यों कलेजा न काढ़ वह लेवे।
हाथ है आप बे-कलेजे का॥

पीसते क्यों किसी पिसे को हो।
और की सोर क्यों रहे खनते॥
है न अच्छा कठोरपन होता।
हाथ तुम हो कठोर क्यों बनते॥

चाहिये था बुरी तरह होना।
बेतरह ढाहते सितम जब हो॥
लाल मुँह जब हुए तमाचों से।
हाथ तुम लाल लाल क्या तब हो॥