पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१५३

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अन्योक्ति

हाथ को काम तो चलाना था।
क्यों न फिर ढग-बीज वे बोते॥
क्या करे रह भरम न सकता था।
है इसी से नरम गरम होते॥

हाथ लो मनमानतो मेंहदी लगा।
या बनो मल रग कोई गाल सा॥
पर तमाचे मार मत हो लाल तुम।
लाल होने की अगर है लालसा॥

जाय छीनी मान की थाली तुरत।
औ उसे अपमान की डाली मिले॥
रख सकी जो जाति मुख-लाली नही।
धूल मे तो हाथ की लाली मिले॥

छाती

नाम को जिन में भलाई है नही।
बन सकेगे वे भले कैसे बके॥
कह सकेंगे हम नरम कैसे उसे।
जो नरम छाती न नरमी रख सके॥