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चोखे चौपदे

चाहते हो बनी रहे लाली।
पर पड़ा चाल ढाल का ठाला॥
छूट पाता नहीं बिलल्लापन।
किस तरह बोल रह सके बाला॥

जब हमी निज भरम गॅवा देंगे।
लोग तब क्यों भरम न खोलेंगे॥
बोल जब हम सके सँभाल नही।
बोलियाँ लोग क्यों न बोलें॥

कब कहाँ पर किसे न भीतर से।
ढोल की ही तरह मिले पाले॥
जब रहे बोलते रहे बढ़ बढ़।
कर सके कुछ कभी न बढ़बोले॥

और के दुख दर्द की भी सुध रखें।
कस नही लेवें सितम पर ही कमर॥
नित उसे हम नोचते ही क्यों रहें।
नोचने से नुच गई दाढ़ी अगर॥