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काम के कलाम

जब कलेजा और का है फाड़ते।
और कहते बात है ताड़ी हुई॥
आँख तब क्यों फाड़ कर है देखते।
दूसरों की दाढ़ियाँ फाड़ी हुई॥

क्या अजब जो मचल बुढ़ापे में।
लड़ कई की कसर गई काढ़ी॥
जो न पाये बिचार ही पक तो।
क्या करेगी पको दुई दाढ़ी॥

क्यों किसी की बात हम जड़ते रहे।
जो जड़े तो नग अनूठे ही जड़ें॥
क्यों पड़े हम और लोगों के गले।
जो पड़े वन फूल की माला पड़ें॥

तब सुधरते तो सुधरते किस तरह।
जब कि सकते सीख हम ले ही नहीं॥
किस तरह तब वह भला जी मे धँसे।
बात उतरी जब गले से ही नही॥