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चोखे चौपदे

वह किये लाड़ लाड़ करता है।
है उखड़ता उखाड़ने से जा॥
मत बिगाड़े बिगाड़ने वाले।
कब न बिगड़ा बिगाड़ने से जी॥

बद बनाती कब नहीं बद आदतें।
छूट पाती है बुरी लत छन नही॥
मन-सहक कैसे नहीं जाता सहक।
क्यों बहॅकता मन-बहँक का मन नहीं॥

हम धनी जी के रहे सब दिन बने।
हाथ मे चाहे हमारे हो न धन॥
तन भले ही हाथ मे हो और के।
पर पराये हाथ मे होवे न मन॥

बात हित की क्यों बताये हम उसे।
बूझ होते बन गया जो बैल हो॥
रख बुरे मैला न कैसे मन मिले।
मेल क्यों हो जब कि मन मे मैल हो॥