पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१७१

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काम के कलाम

जब दिया बेध ही नही उस ने।
तब कहाँ ठीक ठीक बान लगा॥
तान वह तान हो नहीं जिस को।
लोग सुनने लगे न कान लगा॥

छोड़ दे जो बुरा बुराई ही।
तो उसे कौन फिर बुरा माने॥
तब मिलेगी न कौड़ियो कानी।
जब रहे कान से लगे काने॥

भेद की बातें

है उसी एक की झलक सब में।
हम किसे कान कर खड़ा देखें॥
तो गड़ेगा न आँख में कोई।
हम अगर दीठ को गड़ा देखें॥

एक ही सुर सब सुरों में है रमा।
सोचिये कहिये कहाँ वह दो रहा॥
हर घड़ी हर अवसरों पर हर जगह।
हरिगुनों का गान ही है हो रहा॥