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चोखे चौपदे

पेड़ का हर एक पत्ता हर घड़ी।
है नहीं न्यारा हरापन पा रहा॥
गुन सको गुन लो सुनो जो सुन सको।
है किसी गुनमान का मुन गा रहा॥

हरिगुनों को ए सुबह हैं गा रही।
सुन हुई वे मस्त कर अठखेलियाँ॥
चहचहाती हैं न चिड़ियाँ चाव से।
लहलहाती है न उलही बेलियाँ॥

छा गया हरएक पत्ते पर समा।
पेड़ सब ने सिर दिया अपना नया॥
खिल उठे सब फूल, चिड़ियाँ गा उठीं।
बह गई कहती हुई हर हर हवा॥

है नदी दिन रात कल कल बह रही।
बाँध धुन भरने सभी हैं मर रहे॥
हर कलेजे में अजब लहरें
हरिगुनों का गान ए हैं कर रहे॥