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काम के कलाम

मानता जो मन मनाने से रहे।
लौ लगी हरि से रहे जो हर घड़ी॥
तो रहे चाहे कोई कठा पड़ा।
कठ मे चाहे रहे कठी पड़ी॥

जान जब तक सका नही तब तक।
था बना जीव बैल तेली का॥
जब सका जान तब जगत सारा।
हो गया आँवला हथेली का॥

डूबने हम आप जब दुख मे लगे।
सूझ पाया तब गया क्यों दुख दिया॥
जान गहराई गुनाहो की सके।
काम जब गहरी निगाह से लिया॥

आनबान

लोग काना कहें, कहें, बस क्या।
लग किसी की न जायगी गारी॥
चाहिये और की न दो आँखें।
है हमे एक आँख ही प्यारी॥