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काम के कलाम

क्या अपरतीत के घने बादल।
चाँद परतीत को घुमड़ घेरें॥
देखिये बात है अगर रखना।
भूल कर तो न बात को फेरे॥

रग में मस्त हम रहे अपने।
मुँह निहारें बुरे भले का क्यों॥
किस लिये हम सदा बहार बने।
हार होवें किसी गले का क्यों॥

धूल ऑखों मे न झोंके और की।
धूल मे रस्सी न भूले भी बटे॥
काटना चाहे न औरो का गला।
कट न जाये बात से गरदन कटे॥

जो कमाई कर मिले धन है वही।
आँख पर-मुख देखनेवाली सिले॥
मांगने को क्यों पसारे हाथ हम।
क्यों हमें हीरा न मूठी भर मिले॥