पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/१८८

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निराले नगीने

तो बनायेगा बड़ा हो औगुनी।
औगुनों से वह अगर होगा भरा॥
कौन इतनी है बुराई कर सका।
है बुरे मन सा न बैरी दूसरा॥

जायगा कैसे न वह दानव कहा।
जो कि दानवभाब लेकर अवतरा॥
देवता कैसे न देवेगा बना।
देवभावों से अगर है मन भरा॥

तो यहां ही हम नरक मे हे पड़े।
पाप का जी मे जमा है जो परा॥
स्वर्ग का सुख तो बेलसते है यही।
है भला मन जो भले भावों भरा॥

चाह बैकुंठ की नही रखते।
हैं नही स्वर्ग की रुची गहें।
है यही चाह चाह हरि की हो।
हों चुभी चित्त में भली चाहे॥