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निराले नगीने
पा समय मोम सा पिघलता है।
फूल है प्यार रग मे ढाला॥
है मुलायम समान माखन के।
है दयावान मन दयावाला॥
है सुफल भार से झुका पौधा।
है बिमल बारि से बिलसता घन॥
दीनहित के लिये दयानिधि का।
है बड़ा दान दानियों का मन॥
दिल उसे दे दें मगर उस से कभी।
एक मुठी मिल नहीं सकता चना॥
जान देगा पर न देगा दान वह।
सूमपन मे सूम का मन है सना॥
वह कभी काल से नही डरता।
वास यमराज का उसे कैसा॥
है बना सूर, सूर, मन से ही।
कौन है सूर सूर-मन जैसा॥