पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२०८

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निराले नगीने

तो भले भाव के लिये वह क्यों।
बारहा जाय जी लगा जाँचा॥
हो मगन देख लोक-हित-धन तन।
मन अगर मोर लौं नही नाचा॥

है बड़ी भूल भाव में डूबा।
पी कहा नाद जो नही भाया॥
जाति-उपकार-स्वाति के जल का।
मन पपीहा अगर न बन पाया॥

है बड़ा भाग जो बड़े हों हम।
सब भले रंग में रँगा हो तन॥
दुख दिखाये न दुखभरी सूरत।
सुख कमल मुख भँवर बना हो मन॥

तब भलाई भली लगे कैसे।
भूलता जब कि तोर मर नही॥
लोकहित चाव चन्द्रमा का जब।
मन चतुर बन सका चकोर नहीं॥