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चोखे चौपदे

जो गया भूल देख भोलापन।
चोगुना चाव क्यो न तो करती॥
मुखकमल भावरस भरा पाकर।
मन-भँवर क्यों न भॉवरें भरता॥

हो गया है हवा, हवस मे फॅस।
वह गया बदहवास बन बौड़ा॥
हो सका दूर दुख नही उस का।
मन बहुत दूर दूर तक दौड़ा॥

आम वैसा कहाँ रसीला है।
चाँद कब रस बरस सका ऐसा॥
कर रसायन मिली जवानी कब।
रस कहाँ है जवान-मन जैसा॥

मानता हो न जब कही मेरी।
और करता सदा किनारा हो॥
अनमने तब न हम रहें कैसे।
मन हमारा न जब हमारा हो॥