पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२१८

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कलेजा कमाल

है, लबालब भरा भलाई जल।
सोहती है सहज सनेह लहर॥
है खिला लोक-हित-कमल जिस में।
है कलेजा सुहावनी वह सर॥

है सुरुचि के जहाँ बहे सोते।
है दिखाती जहाँ दया-धारा॥
पा सके प्यार सा जहाँ पारस।
है कलेजा-पहाड़ वह प्यारा॥

सब रसों की कहाँ बही धारा।
है कहाँ बेलि रीझ की ऐसी॥
है कहाँ भाव से भले पौधे।
कौन सी कुंज है कलेजे सी॥

हैं जहाँ चोप से अनूठे पेड़।
गा रहा है जहाँ उमग खग राग॥
है जहाँ लहलही ललक सी बेलि।
है कलेजा लुभावना वह बाग॥