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निराले नगोने

हैं भरे दुख भयावने जिस में।
है जहाँ आप पाप जैसा थम॥
है जलन आग जिस जगह जलती।
है नरक से न नर-कलेजा कम॥

ठोसपन से ठसक गठन से हठ।
ऐंठ भी है उठान से बढ़ चढ़॥
हैं गढ़ी बात की चढ़ी तोपें।
नर-कलेजा गुमान का है गढ़॥

बुद्धि को कामधेनु करतब को--
जो कहें कल्पतरु, न बेजा है॥
है मगन मन उमंग नन्दनबन।
स्वर्ग जैसा मनुज कलेजा है॥

कसौटी

पास खुटचाल पेचपाच कसर।
कुढ़ कपट काटछॉट कीना है॥
क्यों करेगा नही कमीनापन।
कम कलेजा नही कमीना है॥