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निराले नगीने

हो भरा सब कठोरपन जिस में।
संग कहना उसे न बेजा है॥
है ठसक, गाँठ, काठपन जिस में।
वह बड़ा ही कठिन कलेजा है॥

कर खुटाई बढ़ा बढ़ा खटपट।
प्यार को बेतरह पटकता है॥
है खटक खोट नटखटी जिस में।
वह कलेजा बहुत खटकता है॥

काहिली, कलकान, कायरपन, कलह।
क्यों न बेबस कर बढ़ा दें बेबसी॥
क्यों बचाई जा सकेगी पत बची।
जब कचाई है कलेजे में कसी॥

मोह लेते मिला वही मन को।
जो गया है न मोह मद से भर॥
काम के काम कर सका कुछ वह।
जो कलेजा सका मकर कम कर॥