पृष्ठ:चोखे चौपदे.djvu/२२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२१५
निराले नगीने

वही चलता उसी की चल सकी।
जो बना चौचंद, चोखा, चरपरा॥
चालवाले को कलेजा चाहिये।
चापलुसी, चाल, चालाकी भरा॥

क्यों रहे चैन उस कलेजे में।
क्यों लटे वह न देख गत वाँ की॥
भूत-भय का जहाँ बसेरा है।
है जहाँ पर चुडैल चिन्ता की॥

है भरा चेटकों चपेटों से।
यह कलेजा उचाटवाला है॥
चुस्त है चिड़चिड़ा चटोरा है।
चटपटी चाव चाटवाला है॥

क्या नहीं है भला कलेजे में।
ढील है ढीठपन ढला रस है॥
है ढचर, हैं ढकोसले उस में।
ढोंग है ढन ढूँढ ढाढ़स है॥