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चोखे चौपदे

है बही जिस ठौर बेतरनी नदी।
गंग की धारा वहाँ कैसे बहें॥
क्या बुरा है जो कलेजे में बुरे।
बैर बदकारी बुराई बू रहे॥

है भरा बेहिसाब भोलापन।
है भटक, भेद-भाव दावा है॥
और क्या है लचर कलेजे में।
भूल है भय भरम भुलावा है॥

जो कलेजे कहे गये छोटे।
क्यों न उन मे रहे छोटाई छल॥
बीर के ही बड़े कलेजे में।
है बिनय बीरता बड़ाई बल॥

सुख सदा पास रह सका जिस के॥
है उसी एक को मिला सरबस।
है कलेजा वही बसे जिस में॥
सुरता सादगी सुरुचि साहस।