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निराले नगीने

तोड़ कर फल को कतरता क्यों रहा।
खा नही सकता उसे जब आप तू॥
मत पराये के लिये बेपीर बन।
हाथ पापी लौं करे क्यों पाप तू॥

हाथ उन पर किस लिये तुम उठ गये।
और उन को पीटने तुम क्यों चले॥
फूल सब है फूलते हित के लिये।
है भले ही के लिये सब फल फले॥

हाथ और तलवार
खेलने पर के भरोसे क्या लगे।
किस लिये हो भेद अपना खोलते॥
तोल तुम ने क्यों न अपने को लिया।
हाथ तुम तलवार क्या हो तोलते॥

हाथ में तो तमकनत कम है नहीं।
पर गई बेकारियाँ बेकार कर॥
ताब तो है वार करने की नहीं।
वार जाते हैं मगर तलवार पर॥