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कोर कसर

सूझ बाले उसे रहे रँगते।
रग उतस न सूझ का चोखा॥
पड़ बृथा धूम धाम धोखे में।
पेट को कब दिया नहीं धोखा॥

रोग की आँच जब लगी लगने।
तब भला वह नही खले कैसे॥
जल रहा पेट जब किसी का है।
आग उस में न तब बले कैसे॥

हैं लगाती न ठेस किस दिल को।
टेकियों की ठसक भरी टेकें॥
है कपट काट छाँट कब अच्छी।
पेट को काट कर कहाँ फेंकें॥

थपेड़े
पेटुओं को कभी टटोलो मत।
कब गई बाँझ गाय दुह देखी॥
जो कि मुँह देख जी रहे हैं, वे।
बान कैसे कहें न मुँहदेखी॥